खेत आली रोटी
घणी याद आवैं वे खेत आळी रोटी
आम के अचार की फाड़ मोटी मोटी
हम बहुत साथ खेले,बहुत देखे मेळे
बहुत याद आवैं सैं वो दोस्तां के रेळे
बचपन सुहाना वो बचपन की यादें
बचपन की कसमें वे बचपन के वादे
जब कदे हम अपणे गाम में जाते हैं
तै पुराणे दिन भोत घणे याद आते हैं
शीला गहलावत”सीरत”
चण्डीगढ़, हरियाणा