खूब रोता मन
कभी जब याद तुम आते,
दृगों को घेर लेते घन ।
अकेले में छुपाकर तन,
सिसकता खूब रोता मन ।।
न कुछ अच्छा लगे जी में,
उदासी का रहे पहरा ।
तुम्हारी पीर अंतर् में,
चलाए तीर अब गहरा ।।
गए जब छोड़ प्रिय तब से,
लगे बैरी सरिस सावन।
कभी जब याद तुम आते,
दृगों को घेर लेते घन ।।
रखा इक बोझ सीने पर,
दिया हूँ जोर जीने में ।
हँसी को कैद कर अधरों
लगा हूँ दर्द पीने में ।।
लिए मैं भार साँसों का,
रहा ढोता यहाँ जीवन ।
कभी जब याद तुम आते,
दृगों को घेर लेते घन।।
कहीं अब खो गई धड़कन,
किया दिल को बहुत पत्थर ।
चला कोई नहीं जादू,
गए अरमान भीतर मर ।।
घिरा निशिदिन अँधेरे में,
भटकता ही रहा वन-वन ।
कभी जब याद तुम आते,
दृगों को घेर लेते घन ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी
sksinghsingh4146@gmail.com