“खूबसूरती”
“खूबसूरती”
जिस्मानी खूबसूरती महज छलावा होती है, जो इंसान को नंगी आँखों से दिख जाती है। लेकिन वास्तविक खूबसूरती आन्तरिक होती है, जिसे परखने वाली आँखों की जरूरत होती है।
( मेरे द्वारा रचित- ‘चुटकी भर सिन्दूर’ : कहानी-संग्रह में संकलित-
‘कुरूप’ कहानी से…)