*खूबसूरती*
*जिंदगी इतनी खूबसूरत हो सकती है ,
किसे पता था।
मैंने प्रेम की जोत जलाई तो सारा जहाँ रोशन हो गया।
जब नफ़रत के बीज थे तब कांटे -ही कांटे थे।
बाह्य ख़ूबसूरती ही ख़ूबसूरती नज़र आती थी ,
बाह्य ख़ूबसूरती से मैंने ने कई बार धोखे खाये।
अब मैं आंतरिक यात्रा पर निकली हूँ ,
अंदर कभी झाँक -कर नहीं देखा था ,
ख़ूबसूरती का आइना मन है ,ज्ञात नहीं था ,
ख़ूबसूरती शुभ विचारोँ की निर्मलता और
सत्यता का शृंगार
विचारों की झाँकी चेहरे पर आ जाती है
चेहरे केआइने में झलक दिखला जाती है ,
मन के आइने में झलक दिखला जाती है
अब आन्तरिक सुन्दरता पर ध्यान केन्द्रित किया है ,
प्रेम त्याग ,दया क्षमा ,आदि बन मन के हार श्रृंगार
बड़ा रहे हैं ,चेहरे का नूर ,
विकारों से दूर , मज़हब मेरा परस्पर प्रेम से पूर्ण
अपना लिये हैं अपनत्व के सारे गुण ,
अपनत्व के बीज ,परस्पर प्रेम की खाद ,
ख़ूबसूरती का राज़ , ख़ूबसूरती का राज़*