खूने-दिल की महक
दुनियादारी के लफड़ों से
मैं पूरी तरह बेगाना हुआ
जब से होश संभाला मैंने
घर मेरा किताब खाना हुआ…
(१)
किताबें पढ़ने के शौक ने
आज कहीं का न छोड़ा मुझे
पहले तो केवल आशिक़ था
मैं बाद में दीवाना हुआ…
(२)
जब रोजी-रोटी तक अपनी
मैं कमाने में नाकाम हूं
ऐ इल्म की शम्मा, तुम्हारा-
आख़िर क्यों मैं परवाना हुआ…
(३)
आज कल मेरे हर लफ्ज़ से
ख़ून-ए-दिल की महक आती है
कोई कह दे बेकदर दुनिया से
मुकम्मल मेरा अफसाना हुआ…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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