खूनी गीत
जब भी मैंने कलम उठाया !
लिखने को कोई गीत नया !!
कलम मेरे रूक जाते हैं !
विचार लुप्त हो जाते हैं !!
क्योंकि, बम-बारूद की भाषा !
आज कवियों की है अभिलाषा !!
हर कविता में खूनी रंग !
हर पंक्ति में है आतंक !!
लिखना है मुझे नया गीत !
पर नहीं लिखूंगा खूनी गीत !!
✍️_ राजेश बन्छोर “राज”
हथखोज (भिलाई), छत्तीसगढ़, 490024