खुशी
खुशी कल्याण की भावना है जो मानसिक और शारीरिक संतुष्टि के कई तरीकों से प्राप्त होती है।
यह एक मानसिक स्थिति है जिसमें सकारात्मक एड्रेनालाईन शरीर मे प्रवाहित होकर आनंद और उत्थान की अनुभूति देता है।
खुशी का भाव अलग-अलग व्यक्ति में अलग होता है और यह व्यक्ति के दिमाग को नियंत्रित करने वाले विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।
मन की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार विभिन्न कारक व्यक्ति के मूल्यों, पसंद और स्वाद, , वातावरण की स्थितियों, व्यक्ति विशिष्ट समूह , जीवन निर्वाह की व्यक्तिगत समझ और जीवन के प्रति दृष्टिकोण और धारणाओं पर आधारित है ।
खुशी भावनाओं के साथ निकटता से जुड़ी हुई है। सकारात्मक भावनाएं अधिक से अधिक मात्रा में खुशी को जन्म देती हैं जबकि नकारात्मक विचारों से इसका प्रभाव नगण्य हो जाता है।
खुशी को दो वर्गों मे बाँटा गया है एक शारीरिक खुशी और दूसरी मानसिक खुशी ।
खुशी की तीसरी श्रेणी आध्यात्मिक खुशी है जो विशिष्ट है। और आम लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करती और इसकी चर्चा के लिए विशेष मंच की आवश्यकता होती है।
शारीरिक प्रसन्नता का सीधा संबंध शरीर में सकारात्मक एड्रेनालाईन प्रवाह होने के फलस्वरूप होने वाले उत्थान या आनंद से है, जो एक व्यक्ति द्वारा उसके शरीर पर होने वाले सकारात्मक प्रभाव की अनुभूति है।
जबकि मानसिक प्रसन्नता किसी कार्य, उपलब्धि या इच्छित परिणामों की अपेक्षा की भावना का परिणाम है, जो सीधे मानसिक संतुष्टि से संबंधित है।
भौतिक सुख को अल्पकालिक और दीर्घकालीन सुख में वर्गीकृत किया जाता है।
अल्पावधि सुख की प्राप्ति को खुशी कहा जाता है जो समय बीतने के साथ समाप्त हो जाती है, जबकि लंबी अवधि की खुशी शारीरिक कल्याण की भावना है जो एक व्यक्ति अपने निरंतर प्रयासों से एक निर्धारित समय की अवधि में प्राप्त करता है और लंबे समय तक बनी रहती है।
शारीरिक और मानसिक खुशी एक-दूसरे के परिपूरक हैं ।मानसिक स्थिति को नज़रअन्दाज़ कर भौतिक खुशी को वांछित स्तर तक प्राप्त नहीं किया जा सकता है और इसी प्रकार भौतिक खुशी के अभाव मे मानसिक खुशी की अनुभूति संभव नही है।
दीर्घकालीन खुशी तब प्राप्त होती है जब शारीरिक और मानसिक परिस्थितियों के सामन्जस्य के फलस्वरूप दीर्घकालीन संतुष्टि की अनुभूति होती है।
आसपास का वातावरण और आसपास के लोग भी खुशियों को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।
विद्धयमान सकारात्मक वातावरण, पारस्परिकता और संयोजन में लोगों की भागीदारी खुशी को बढ़ाती है।
इसके विपरीत नकारात्मक वातावरण एवं नकात्मक लोग खुशी की अनुभूति पर नकारात्मक प्रभाव डालते है और प्राप्त खुशी को इस हद तक कम कर देते है, कि खुशी की स्थायी शक्ति कम होते होते समय बीतते खो जाती है।
तन और मन का स्वस्थ रहना भी खुशी की अधिक से अधिक अनुभूति के लिये आवश्यक है ।
वास्तविक खुशी वह खुशी है जो अन्तर्निहित मानसिक और शारीरिक स्थिति के लंबे दौर तक मौजूद रहती है, जिसे आसपास के लोगों के साथ साझा करने की शक्ति को बढ़ावा मिलता है। और सकारात्मक भावना युक्त तरंगों के साथ खुशी का माहौल बनाती है।