खुलने लगे हैं शहर,लोग मुलाकात करने लगे है
खुलने लगे हैं शहर,लोग मुलाकात करने लगे है।
मोबाईल को छोड़,आपस में बात करने लगे हैं।।
अंधेरे छटे है,अब उजाले भी नजर आने लगे हैं।
लोग एक दूजे के चेहरे अब साफ देखने लगे हैं।।
दरवाजे जो बंद थे,अब फिर से खुलने लगे हैं।
बिना हिचकिचहाट के लोग अब मिलने लगे है।।
बाजारों में अब रौनक दुबारा से लौटने लगी है।
बाजार मे सब वस्तुए दुबारा से मिलने लगी है।।
मुंह जो बंद थे,बाहर निकल कर खुलने लगे हैं।
चाट पकोड़ी की ठेले बाजार में लगने लगे हैं।।
रस्तोगी की कलम बंद थी अब लिखने लगी है।
उसकी कविताएं अब मैगजीनो में छपने लगी है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम