खुद से है दूरी मीलो की…
खुद से है दूरी मीलो की…
पर पास सभी के जाते है…
अपनी नज़रों में गिरे पड़े…
सबकी नज़रों में छाते हैं…
कभी झांक के खुद में देखे..
क्या हम सचमे प्यार निभाते है..??
अंदर से कुछ और; और हैं
बाहर कुछ और दिखाते है…
अपने कष्टों को आप छिपा…
क्या खूब कला दिखलाते हैं..
कभी झूठी मुस्कानों को सज़ा..
खुद को सम्पूर्ण बताते है…
हैरत कहां हमें खुद पर..
औरो को गिरा बताते हैं..
झूठी शानो की दुनिया मै..
यूं खुद को सफल बताते हैं..
“अहसानों” की तलवारो से
छोटो को छोटा करते हैं..
फिर झूठी सहानुभूति जता..
खुद से ही हम छल करते हैं..
तेरे दुख से मुझे बड़ा ताप..
करुणा की नदिया रीती है
पर भीतर _भीतर खुश होते..
की हम पर यह ना बीती है..
यह #सच्ची सह अनुभूति नहीं!!!
बस रुग्ण पवन का झोंका है..
खुद को बेहतर बतलाने का..
यह एक प्रपंच है धोखा है…!!
कु प्रिया मैथिल