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3 May 2024 · 1 min read

मनहरण घनाक्षरी

मनहरण घनाक्षरी

चमकते हुए चल,
दमकते हुए बढ़,
भुजाओं में भर कर,
जगत को उठाओ।

परिश्रम सदा कर,
दृढ़ मन सदा रख,
अंतस में मानव को,
प्रति पल बिठाओ।

निर्मल विमल मन,
यही है शुभद धन,
कर जोड़ जग पग,
हृदय से लगाओ।

मानव धरम जान,
परिवार इक जान,
द्रवीभूत बन कर,
वारिदल बनाओ।

सुन्दर सहज बन,
स्नेहिल वदन धन,
शक्ति के स्वरूप प्यार,
से जगत सजाओ।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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