खुद को देखो
खुद को देखो
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खुद को देखो,
स्वयं की नजरों से,
अपनी अच्छाइयों को,
उन खौफनाक बुराईयों को।
मंज़िल पर पहुंचने की,
तमाम कठिनाइयों को,
खुद से परखो,
मग़र अपने दिल से ।
गलतियाँ हो यदि जीवन में,
समय के अपव्यय की,
डाँटो, खुद को डाँटो,
मगर, अपनी लफ्जों से ।
मैं हैरान हूँ कि,
मेरी कोई भी बातेँ,
तेरे दिल को नहीं छूती,
अपने दिल की धड़कने सुनो,
मगर शांतचित्त होकर ।
आत्मावलोकन ही,
सबसे बड़ा उपचार है मन का,
इसे व्यर्थ न जाने दो,यूँ ही,
आत्मा की पुकार सुनों,
मगर विशुद्ध अन्तःकरण से।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि -१६ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201