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29 May 2024 · 1 min read

“खुद को खुली एक किताब कर”

खुद को खुली एक किताब कर
खुले आसमान का आफ़ताब कर

चाहता है गर सुकून जिंदगी में
झुक के सबको आदाब कर

तिल तिल कर घुटता रहेगा यूं
दिल की बस्ती इश्क़ से नायाब कर

कुछ गम भी अपना ले जिंदगी के
जिंदगी को न यूं अपनी ख़राब कर

मुस्कुरा के हरा मुश्किलों को राणा
काँटों के बीच खुद को गुलाब कर

©ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी”
सनावद (मध्यप्रदेश)

Language: Hindi
31 Views
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