खुद को एक खुली किताब कर…
खुद को एक खुली किताब कर
अरमानों को दिल सेआजाद कर
चाहता है गर सुकून जिंदगी में
किस्सा ये आज ही तमाम कर
तिल तिल कर घुटता रहेगा यूं
दिल के बोझ को हलकान कर
कुछ गम भी अपना ले जिंदगी के
अपनी जिंदगी को न यूं बर्बाद कर
© ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी”