खुदा का इंसाफ
गुनाहों का ज़माने में यूं सफाया हो सकता है ।
गर गुनहगार गुनाह करने से पहले सोचे ,
खुदा सबको देख रहा है सजा दे सकता है।
और गुनाहगारों से त्रस्त पीड़ित यह सोचे ,
पूरे विश्वास के साथ खुदा देख रहा है ,
आपकी पीड़ाओं का निवारण वही कर सकता है।
है वाक्य वही मगर दृष्टिकोण में फर्क है।
एक के लिए सजा और दूजे के लिए दवा ,
खुदा की अदालत में हर फैंसला उचित होता है।
बस मन में हर इंसान को विश्वास और ,
खौफ भी रखना जरूरी होता है ।
विश्वास मन को मजबूत बनाता है और ,
खौफ ईमान को बहकने नही देता है।
इसीलिए जीवन में एक संतुलन आवश्यक है।
जो इंसान को इंसान बनाता है।