*खुदा अन्न-दाता से खफ़ा हो गया*
खुदा अन्न-दाता से खफ़ा हो गया
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खुदा अन्नदाता से खफ़ा हो गया,
खेतोँ का हरा रंग कहाँ दफ़ा हो गया।
पकी पकाई फसलें सोने समान थी,
बे मौसमी बरसात से सफ़ा हो गया।
हो गया कुदरत के कहर का असर,
हाथो मे आया समान रफ़ा हो गया।
कौन है जो चुकाये साहूकारी कर्ज,
किसान का खुदा तो जफ़ा हो गया।
कोई न जाने खुदा की रंग-मिजाजी,
किताबी हिसाब रफ़ा-दफ़ा हो गया।
बूँद -बूँद हुई भारी अन्न की फर्द पर,
खलिहानो का राजा बेवफ़ा हो गया।
सालभर की कमाई गवाई मनसीरत,
कोई न जानता किसे नफ़ा हो गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)