खिड़की मेरे कमरे की
खिड़की मेरे कमरे की
खिड़की जो है मेरे कमरे की
वो मुझें सबसे ज्यादा सुकून देती हैं
मुझे राहत के पल देती हैं
थकहार जब जाती हूं उसके पास
तो मेरे मन की बदहाली को दूर करती ह6
मेरा ह्रदय परिवर्तित कर बहलाती हैं मुझे
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
बाहर जो लगा है एक लम्बा से पेड
उसको देख में बात करती हूं प्रकर्ति की
उसकी हरि भारी डालियां सुंदर कोमल पत्तो केसाथ
वो लहराती हैं मंदमंद पवन के झोंखो के साथ
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
प्रकृति के हर रूप को निहारती हूँ उस खिड़की से
च हकती हुई चिड़ियों का वो मधुर कलरव
कॉनो को सुकून भर डेता हैं
अपने नीड़ पट लौट आना शाम ढलते ही
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
बाहर लगे रंगीन फूलों की वो मधुर मुस्कान
दूर कर देती हैं मेरे दिनभर की थकान
लौट आती हैं उन्हें देख नई दी ऊर्जा मुझमे
खुश कर देती हैं मेरे मन की सारी टूटन को
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
बचपन को याद दिलाती हैं खिड़की मेरे कमरे की
जब मैं माँ से गुस्सा हो रूठ कर घंटो बैठती थी वहाँ
वो खिलखिलाता बचपन न जाने कहाँ खो सा गया
याद दिलाती हैं मेरे जीवन की हर क्रिया प्रतिक्रिया को
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
मेरे मन को सुकून दे देती हैं मेरे कमरे की वो खिड़की
कभी कोई नानुकर भी नही की उसने
जिस सोच के साथ मैं आई उनके पास बस उसने तो
राहत ही राहत लौटाई मेरी झोली मे
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद
खिड़की जो है मेरे कमरे की
वो मुझें सबसे ज्यादा सुकून देती हैं
मुझे राहत के पल देती हैं
थकहार जब जाती हूं उसके पास
तो मेरे मन की बदहाली को दूर करती ह6
मेरा ह्रदय परिवर्तित कर बहलाती हैं मुझे
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
बाहर जो लगा है एक लम्बा से पेड
उसको देख में बात करती हूं प्रकर्ति की
उसकी हरि भारी डालियां सुंदर कोमल पत्तो केसाथ
वो लहराती हैं मंदमंद पवन के झोंखो के साथ
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
प्रकृति के हर रूप को निहारती हूँ उस खिड़की से
च हकती हुई चिड़ियों का वो मधुर कलरव
कॉनो को सुकून भर डेता हैं
अपने नीड़ पट लौट आना शाम ढलते ही
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
बाहर लगे रंगीन फूलों की वो मधुर मुस्कान
दूर कर देती हैं मेरे दिनभर की थकान
लौट आती हैं उन्हें देख नई दी ऊर्जा मुझमे
खुश कर देती हैं मेरे मन की सारी टूटन को
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
बचपन को याद दिलाती हैं खिड़की मेरे कमरे की
जब मैं माँ से गुस्सा हो रूठ कर घंटो बैठती थी वहाँ
वो खिलखिलाता बचपन न जाने कहाँ खो सा गया
याद दिलाती हैं मेरे जीवन की हर क्रिया प्रतिक्रिया को
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
मेरे मन को सुकून दे देती हैं मेरे कमरे की वो खिड़की
कभी कोई नानुकर भी नही की उसने
जिस सोच के साथ मैं आई उनके पास बस उसने तो
राहत ही राहत लौटाई मेरी झोली मे
वो मुझे सुकून देती हैं
खिड़की जो हैं मेरे कमरे की
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद