खारिज़ करने के तर्क / मुसाफ़िर बैठा
मुझे उसे समंदर बनाये जाने पर गहरा एतराज लगा।
मैंने उसकी सही औक़ात की जगह दिखाने को उसे रेगिस्तान कहना चाहा।
याद आया रेगिस्तान में भी दुबई, कतर जैसी समृद्ध शहराती दुनिया है, दुनिया को गतिमान रखने के तेल-खजाने हैं
मैंने उसे ताल तलैया की माफिक छोटा बताना चाहा
तब लगा कि नाहक ही तालाबों की औकात बताने में लगा हूँ।
कितने काम के होते हैं तालाब
नास्तिक, आस्तिक, जीव जंतु, चिड़ई चुनमुन रंग बदरंग सबके काम के होते हैं वे
नदी नाले आदि से भी उपमित कर उसे उसकी सही जगह दिखाने की तरकीब पर विचार किया
जाहिर है यह भी अनुचित जँचा।
नदी तो सभ्यताओं की जन्मदात्री ही है, और अंधमनुष्यों के आधुनिक असभ्य अंधविश्वासी करतबों के सिंचन का जरिया भी
और, नाले चाहे ख़ुद गंधाये, हम मनुष्यों की कई कई दुर्गंधों को पाटने में सहयोगी हैं
अंततः तय किया मैंने
बिना मुहावरों, कहावतों एवं दृष्टांतों के ही
उसे सीधे साफ़ ही क्यों न ख़ारिज किया जाए!