खामोश दिल की आवाज
करना था खुद से मोहब्बत, मगर मोहब्बत कम पड़ गई
गुजरना था हमें उनकी गली से, मगर ये आंख नम पड़ गई
हमने उनकी उनसे ही, यह बात की अज़ीज़ से मगर
वह हमारी ना सुनी, और वो अपने मन की कर गई
दिल मेरा यूं इस कदर, अज़ीज़ से लबालब है मगर
तुम्हारी बातें मेरे दिल को, अब क़ातिल सा कर गई
हम तुम्हारी ही राह देखते, रह गए रात भर मगर
तुम हमारे भाई को, शाम को ही राम राम कर गई
इतनी लंबी खामोशियां, दिल पर मेरी छाई है मगर
तुम मेरी इन खामोशियों को अब और तन्हा कर गई
नई मंजिल पाने को, “शिवा” पर छाया है जुनून मगर
तुम मेरी इस जुनूॅं को,एक अफसाना सा अब कर गई
★©अभिषेक श्रीवास्तव “शिवाजी”
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