खामोशियों ने हीं शब्दों से संवारा है मुझे।
उस भीड़ से ज्यादा इस तन्हाई ने संभाला है मुझे,
दिन के उजालों ने नहीं, रात के अंधेरों ने निखारा है मुझे।
सितारों का अपना तो, मैं कभी बन ना सका,
पर गर्दिशों ने बड़े नाज़ से पाला है मुझे।
अंतर्मुखी मन को मेरे, कोई समझ ना सका,
इसलिए ख़ामोशियों ने हीं, शब्दों से संवारा है मुझे।
बहारें मेरी दहलीज़ को, कभी छू ना सकीं,
पर पतझड़ के फूलों ने, गलीचों से नवाज़ा है मुझे।
वो सूरज मेरी किस्मत में, कभी चमक ना सका,
पर हर रात उस चाँद ने, पुकारा है मुझे।
उठती लहरें मुझे साहिल से, कभी मिलवा ना सकीं,
ऐसे समंदर ने गहराईयों में, उतारा है मुझे।
हवाएं मेरे दामन में, कभी छिप ना सकीं,
ऐसे आंधिओं ने हीं, हर बार उजाड़ा है मुझे।
ख़्वाहिशें मेरी आँखों में, कभी बस ना सकीं,
जिम्मेवारिओं ने कर्तव्यों से, कुछ ऐसे बाँधा है मुझे।
सीढ़ियां मंदिर की तेरे साथ, मैं कभी चढ़ ना सका,
पर मरघट में तेरे साथ, जल जाना है मुझे।