ख़्वाब उसी का गढ़ते हो
ख़्वाब उसी का गढ़ते हो
आना कानी करते हो
हुस्न ग़ज़ब का है तेरा
क्यूँ कहने से डरते हो
रोज़ चकोरी की छत पर
बिन मौसम ही झरते हो
बात बनाना छोड़ो अब
कह दो ना तुम मरते हो
धक-धक धड़के दिल ‘माही’
छुप छुप आहें भरते हो
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’