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30 Dec 2024 · 1 min read

ख़्वाब उसके सजाता रहा.., रात भर,

ख़्वाब उसके सजाता रहा.., रात भर,
नींद में मुस्कुराता……, रहा रात भर।

रूबरू ख़ुद से होने की ज़िद थी मुझे,
अक़्स तेरा बनाता….., रहा रात भर।

वो जगाकर मुझे जाने कब सो गयी ?
मैं ग़ज़ल गुनगुनाता रहा…, रात भर।

इस ज़माने का कैसे..? करूँ सामना,
ख़ुद से नज़रें चुराता रहा.., रात भर।

जिसने’ काँटे ही’ बोए उसे आज तक,
रोशनी मैं दिखाता रहा….., रात भर।

है छलावा मेरी मुस्कुराहट…., सुनो..!
दर्द दिल में छुपाता रहा…., रात भर।

जो “परिंदा”….! उड़ानों पे’ इतरा रहा,
क़ैद में छटपटाता रहा……., रात भर।

पंकज शर्मा “परिंदा”

Language: Hindi
15 Views

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