ख़ौफ़
कल रात जब में वापस घर को लौट रहा था !
तब मुझे लगा कि कोई मेरा पीछा कर रहा है !
मुड़ कर देखा तो एक साया नजर आया !
मैंने पूछा तू कौन है ?
उसने कहा मैं खौफ़ हूँ !
दहश़तग़र्दी फैलाना मेरा काम है !
मैं वो आग हूँ जो फ़िरकापऱस्ती के तंदूर में
जलती हूँ !
जिसमें सिय़ासत की रोटी पकाई जाती है ,
मैं वो जरासिम़ हूँ ! जो लोगों के खून में फैल कर उनके मऱासिम खत्म कर देती हूँ !
दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त बनाना मेरा श़गल है !
लोगों के खून में फैल कर उन्हें जुऩ़ूनी बनाना मेरा
श़ौक है !
मेरा अकेला व़जूद नहीं है !
मैं चंद सरफ़िरे नौजवानों की भीड़ की श़क्ल लिए उभरती हूँ !
और आग़़जनी, लूट, कत्ल ओ ग़ारद अंजाम देती हूँ !
ग़द्दारी मेरी जान है !
नफ़रत के बीज बोना मेरी शान है !
मै मज़लूमों और मास़ूमों पर
क़हर ब़रप़ाती हूँ !
पर हिम्म़तवाले जाँबाज़ों का मुकाबला करने से
मैं डरती हू्ँ !
क्योंकि जिस दिन ये मेरे खिलाफ़ खड़े हो जाएंगे !
उस दिन मेरी हस्ती जड़ से मिटा कर ही दम़ लेंगे ।