ख़ुद के प्रति कुछ कर्तव्य होने चाहिए
मान सम्मान खुद के प्रति
प्रबल मजबूत होना चाहिए
अभिमान नहीं खुद पर
लेकिन स्वाभिमान होना चाहिए
अपमान किसी का करना नहीं चाहिए
और अपमान सहना भी नहीं चाहिए
ज़िंदगी को बेहतर कल मिल सके
प्रयास आज़ ही ख़ुद को करना चाहिए
भेद नहीं है स्त्री और पुरुष में बस
अपनी ज़िम्मेदारी का बोध होना चाहिए
शब्दों की शैली का ध्यान रखना चाहिए
बोलते हुए विष नहीं अमृत निकलना चाहिए
चार दिन की ज़िंदगी का क्या ही घमंड करना
सबके प्रति करुणा और प्रेम होना चाहिए
हर मुश्किल समय से लड़ना ख़ुद को आना चाहिए
जीवन की शुरूआत जहां से भी हो लेकिन होनी चाहिए
_सोनम पुनीत दुबे