ग़ज़ल
ख़िरद की बात मत करना बुराई से
रहेगा दूर वरना हर बधाई से/1
जिसे चाहत समझ आती नहीं उसको
कभी फ़ुरसत नहीं मिलती तन्हाई से/2
रुलाकर और को जोड़े करोड़ों पर
ख़ुशी हासिल नहीं उसको क़माई से/3
करे चुगली गिरे इकदिन नज़र से वो
बसे दिल में नहीं फिर वो सफ़ाई से/4
रहे जो संग पर चाहत नहीं समझे
समझ आए उसे फिर सब जुदाई से/5
नहीं छल से कभी भी दिल मिला करते
मिलन होना रुहानी है वफ़ाई से/6
अदालत तो सुबूतों पर चला करती
चलें रिश्ते मुहब्बत की दवाई से/7
आर. एस. ‘प्रीतम’
शब्दार्थ- ख़िरद- चतुराई