ख़ामोशी
ज़मीं की तरह थी वो मेरी आँखें,
उम्मीदों से भरी हर एक बातें।
पर वक्त की चालनी ने ले ली जुदाई,
छूट गई है अब वो प्यारी रातें।
दिल का दरिया जो था बहा बहाकर,
अब सूख गया है, बस खाक ही राही।
ज़िन्दगी के संगीने में दर्द ने छाक की,
हर पल हो रहा है ये ख़ामोश आही।
खुदा ने लिखी थी हमारी तक़दीर,
लेकिन हमें मिला है सिर्फ़ ग़म का इज़हार।
रात के आँधियों में खड़े हैं अब हम,
टूट गए हैं ख्वाबों के अपार सहारे।
दिल बेहाल है, रूह उदास है,
ज़िंदगी की धुंध में रास्ता खो गया।
प्यार के सपने सभी बिखर गए हैं,
मोहब्बत का ज़हर दिल में छोड़ गया।
गहरी सांसें भरी रूह का कारवां,
हर आहट में अब बस आँसू छलक रहें।
प्यार की तारीफ़ थी जब होंठों पर,
अब तरनुमे में छुपी हैं तरंगें।
ये दर्द भरी गज़ल मेरे दिल की कहानी,
जो बयां करती है रूह की पीड़ा।
पर इस दर्द में भी है
एक ख़ूबसूरती,
क्योंकि ये गज़ल है प्यार की मेहरबानी।