ख़याल
मेरे मन में तो बार-बार ये ख़याल आता है
अगर मैं ना हुआ सफ़ल ये बारम्बार आता है
कभी-कभी ये दिल बहुत घबरा जाता है
कभी-कभी दिल दिल से ही हार जाता है
चारो तरफ़ छाया अंधेरा घना
ऐसे में दिल कैसे हो फना
आती है नित नई मुसीबत
तब दिल ये टूट जाता है
कभी-कभी ये दिल बहुत घबरा जाता है
कभी-कभी दिल दिल से ही हार जाता है
फ़िर भी… मन के इक कोने में
विश्वास अब तक क़ायम है
फ़िर भी… चल रहे क़दम
चाहे क़दम यह घायल है
फिर भी मेरा मन ये सोचता है
चाहे ये छाई घनघोर घटा है
या तो सफलता के पैर मैं चूमूंगा
या फिर विफलता का आसमां छू लूंगा
पर मेरा मन, यह ताने न देगा
कोशिश न की, ये बहाने न देगा
इसलिए मैं बस अपना कर्म किये जाता हूँ
आगे है होना क्या यह मर्म छोड़े जाता हूँ।
-राही