खद्योत हैं
‘ राम ‘ नहीं है कर्म में, नहि चरित्र है पास।
वर्णन करने चल दिए, आदि पुरुष इतिहास।।
केवल आखर ज्ञान से, भाखन चले चरित्र।
ये सुपनाखा के यार है, अरु रावण के मित्र।।
ब्राह्मण घर पैदा हुए, मनोज और विश्वास।
पैसे खातिर कर रहे, भृगुकुल का ये नाश।।
नही भक्ति न भाव है, न प्रभु में विश्वास।
केवल शब्द प्रपंच से, ये बनेंगे तुलसीदास।।
राम नाम है जागरण, है सत्य सनातन प्राण।
प्रभु पर क्या ये लिखेंगे,आज के कवि औ भाड़।।
जय श्री सीताराम