खंडहर हूं
खंडहर हूं वीराने में बसती
अतीत जान न घबराना यहां जिन्दगी की कहानी मैं सुनाती हूं।
यूं ही नहीं बनी खंडहर मैं इसमें राज कई छुपायी हूं
जाने अंजाने जो किया जिसने उसको अहसास दिलाती हूं।
खंडहर हूं खंडहर बन रह जाती हूं
कभी प्रेम कहानी तो कई किस्से गजब सुनाती हूं ।
खंडहर बन दीवारों से कुछ शब्द गुनगुनाती हूं
इसलिए अनकही अनसुनी बातों पे भी नाम अपना
बेवजह ही जुड़वा लेती हूं।
मैं पूछती हूं आखिर मैं ऐसा क्यों कर जाती हूं ?
बसती थी कभी यहां भी कुछ तुम जैसे ही जिन्दगियां
फिर जाने क्यों सब यादें देकर खंडहर मुझे बनाते हैं ,
खंडहर हूं मौन कहां रह सकती हूं ।
किसलिए बन गई खंडहर यही आपबीती सुनाती हूं
खंडहर हूं वीराने में बसती अतीत जान न घबराना
यहां जिन्दगी की कहानी मैं सुनाती हूं।
– Prabha Nirala