*क्रुद्ध हुए अध्यात्म-भूमि के, पर्वत प्रश्न उठाते (हिंदी गजल
क्रुद्ध हुए अध्यात्म-भूमि के, पर्वत प्रश्न उठाते (हिंदी गजल/गीतिका)
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1
क्रुद्ध हुए अध्यात्म-भूमि के, पर्वत प्रश्न उठाते
तपोभूमि यह भोगी बनकर, लोग यहाँ क्योँ आते
2
यहाँ साधना मेँ रत शंकर, ओमकार को भजते
ब्रह्म-ज्ञान के इच्छुक साधक, यहाँ ब्रह्म को पाते
3
यहाँ बर्फ से ढकी चोटियाँ, निर्मल धारा बहती
यहाँ विलासी-जन विलासिता, सामग्री क्योँ लाते
4
पूजनीय यह वन्दनीय यह, इनको पुष्प समर्पित
इनका रूप अनूप ब्रह्म के, यह स्वरूप कहलाते
5
पर्यावरण प्रदूषित करना, बड़ा पाप है भारी
जिम्मेदार इसी को सब, जल-प्रलय हेतु ठहराते
6
पर्वत-पेड़-नदी के बल पर, जिंदा है यह धरती
अपने पैर कुल्हाड़ी खुद ही, हैँ नादान चलाते
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451