“क्रान्ति”
“क्रान्ति”
क्रान्ति न जनमती है न मरती है
हृदय में छुपी रहती है,
अत्याचार की सीमाएँ लांघने पर
बन्दूक की नली से निकलती है।
ज्वाला बनकर जलती है
खून में पकती-उबलती है,
जरा गौर से देखना
वो मजदूरों के पसीने में पलती है।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति