कविता : क्यों व्यर्थ चिंता करते हो?
कुछ भी नहीं है हाथो में, क्यों व्यर्थ चिंता करते हो?
फल कर्म जैसा मिलता है, क्यों बात भूला करते हो?
भूलो बुराई बद बातें, संसार ज़न्नत पाओगे।
भगवान जीवों में बसता, छिपकर कहाँ फिर जाओगे।।
देकर उजाले औरों को, अपने अँधेरे मिट जाते।
आशीष पानेवालों का, हम भी कहीं तो हैं पाते।।
तरुवर लगाया हमने है, छाया किसी को मिलती है।
पर छाँव पानेवाले की, आत्मा हमीं में बसती है।।
जो मेहनत सच्ची करते, भगवान उनसे ख़ुश होता।
वरदान जाने फिर कैसे, किस रूप में आकर देता।।
सब सोचकर यह करना तुम, है देखता कोई तुमको।
अच्छा करोगे सच में ही, भय तो लगा करता सबको।।
#आर. एस.’प्रीतम’
#स्वरचित रचना