क्यूँ लिखती हो हिंदी में ?
लिखने लगी जब कविता हिंदी में
कई सवाल आए ज़िंदगी में
अरे जब पढ़ी हो अंग्रेज़ी में
तो क्युओं लिखती हो हिंदी में ?
मैंने भी सोचा बहुत विचारा
बात तो सही थी ,जिसने भी कही थी
जब लगाया था इतना ज़ोर
याद रखने अंग्रेज़ी के तोड़
अव्वल आने की मचाई थी होड़
डिग्री मिलने पर हुए थे सभी भाव विभोर …
फिर क्यूँ नहीं लिखती उसी भाषा में
अपने मन का ये शोर ?
सोचा तो समझ आया …
वो भावों की अभिव्यक्ति वो रूप का अलंकार
वो शब्दों की व्युत्पत्ति और वर्णों का आकार
शायद ये हिंदी ही मेरी सोच के सपनों को करती साकार
इसके सारे रूप रंग बसे है मेरे तन मन में
कह ना पाऊँगी उस भाषा को अपने कथन में
कहाँ ढूँढ पाऊँगी इतना प्यार उस भाषा के वचन में !