क्या है उसके संवादों का सार?
एक हीं प्रश्न पूछते हैं, वो हर बार ,
क्या है उसके संवादों का सार?
उसके सार में है, पीड़ा अपार,
क्या सुन सकोगे, तुम हो तैयार?
सोचा बदल देगी, सबके विचार,
पर तिरस्कृत हुई, वो सरे बाज़ार।
अपनों ने हीं किये थे, भीषण प्रहार,
और दोषी कहा, उसे बारम्बार।
अश्रु नहीं, रक्त की हुई थी बौछार,
और भेदी गई आत्मा, कई बार।
आँचल पर हुआ था कीचड़ का प्रहार,
और सफ़ेदपोश बने रहे लोग हर बार।
स्मृतियों से उसके हुए खिलवाड़,
और रिश्ते किये गए, दागदार।
आश थी हो, एक सुखद संसार,
पर पहुंचाया उसे, नरक के द्वार।
खड़ी की गयी, अग्निपरीक्षा की कतार,
और साधे गए, विषैले बाण हज़ार।
पुत्री को जो, समझे विकार,
ऐसे दानवों से हुआ था सरोकार।
ये शब्द नहीं है, है ये अश्रु की धार,
और ताप अग्नि की है, इनका आधार।