क्या हुआ जो मेरे दोस्त अब थकने लगे है
अर्धशतक उम्र का पार हो गया
जीवन क्या था , क्या हो गया ,
एक दशक पहले का मेरा युवा मित्र
खुद को बूढ़ा स्वीकारने को तैयार हो गया
रक्त की मिठास बढ़ गई थोडी
रक्त के चाप ने भी गति पकडी निगोडी
जुल्फो पर चांदी का राज है तगड़ा
तोंद भी बनती जा रही है तबला
दौड तो क्या , चलना भी हांफनी बढ़ाए
बडे वजन को घुटने आखिर कैसे उठाए
चेहरे पर चमक को बढ़ाने के,
वो करता जाए भरसक उपाय
बुढापे के जीवन का कर विचार
माथे की लकीरो का बढ़ रहा अंबार
बच्चो के सुनहरे भविष्य की आकांक्षा
करती जाती चिंता का विस्तार
फिर भी वो हंसता खिलखिलाता है
दो पल यारो के संग बिता, इतराता है
जब कुछ भी ना बचेगी उम्र भर की जोडी जमा पूंजी
दोस्ती की मजबूत पोटली उसके साथ होगी
दुख मे कंधे पर मित्र का हाथ
खुशी मे बगल खडे हो निभाए साथ
परवाह के बस दो मीठे बोल
सुखमय जीवन का इकलौता राज
संदीप पांडे”शिष्य” अजमेर