*क्या हाल-चाल हैं ? (हास्य व्यंग्य)*
क्या हाल-चाल हैं ? (हास्य व्यंग्य)
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आमतौर पर लोग नमस्ते के स्थान पर “क्या हाल-चाल हैं”- शब्द का प्रयोग करते हैं। उनका अभिप्राय नमस्ते ही होता है। वह हाल-चाल पूछने के लिए हाल-चाल नहीं पूछते हैं। कई बार नमस्ते करने के बाद बातचीत को आगे बढ़ाने की दृष्टि से लोग अक्सर कह देते हैं -“और क्या हाल-चाल हैं “। इसका अभिप्राय भी किसी का हाल-चाल पूछना नहीं होता। यह एक तरह से नमस्ते के कार्यक्रम को लंबा खींचना कहा जा सकता है। लेकिन क्योंकि हाल-चाल पूछा गया होता है अतः कई बार व्यक्ति भोलेपन में आकर अपना हाल-चाल बताना शुरू कर देता है।
एक बार हमारे पास दूसरे शहर से एक साहित्यकार का फोन आया। नमस्ते के उपरांत प्रश्न था “और क्या हाल-चाल हैं ?”
हमने सीधेपन में उन्हें बता दिया “हमारी तबीयत खराब है। अभी तो हम एक महीने से बीमार हैं। एक महीना और बीमार रहेंगे।”
फिर टेलीफोनकर्ता हमारा हाल-चाल ही पूछते रहे और हम उन्हें केवल अपना हाल-चाल बताते रहे। उसके बाद उन्होंने अंत में यह कहकर टेलीफोन रख दिया-” ईश्वर करे आपका हाल-चाल ठीक हो जाए।”
जब वार्तालाप समाप्त हो गया तब हमारी समझ में आया कि इन सज्जन ने हमारा हाल-चाल पूछने के लिए टेलीफोन नहीं किया था। कारण यह था कि उन्हें तो हमारी बीमारी के बारे में कुछ पता ही नहीं था। इसका मतलब यह निकला कि टेलीफोन किसी अन्य कारण से किया गया होगा। बाद में पता चला कि पड़ोसी शहर की एक संस्था हमें सम्मानित करना चाहती थी, जिसकी सूचना देने का दायित्व टेलीफोनकर्ता के ऊपर सौंपा गया था। लेकिन उन्होंने हमारे हाल-चाल को सुनकर अपने शहर का हाल-चाल कुछ बताया ही नहीं। इस तरह एक अदद सम्मान हाल-चाल पूछने और बताने के चक्कर में हमारे हाथ से निकल गया। दरअसल हमें पूछना चाहिए था कि “नमस्ते! बताइए कैसे याद किया ?”
अपना हाल-चाल बाद को बताना चाहिए। जब सारी बातें हो जाएं तब आप अपना हाल-चाल बताने के लिए स्वतंत्र हैं। उसमें कभी भी घाटा नहीं होगा। उसके बाद से हमने कसम खा ली कि अगर कोई व्यक्ति टेलीफोन पर हमसे कहेगा कि क्या हाल-चाल है, तो हम अपना स्वास्थ्य नहीं बताएंगे बल्कि उत्तर में केवल नमस्ते कहेंगे।
हाल-चाल का ही एक दूसरा किस्सा सुनिए । एक बार हमने सड़क पर चलते-चलते एक दुकानदार से पूछ लिया -“बंधुवर क्या हाल-चाल हैं ?”
तेजी से जा रहे हमको उन दुकानदार बंधु ने तत्काल रोक लिया। कहने लगे -“हाल-चाल बहुत खराब हैं ।”
हम फुर्ती से जा रहे थे। हमारा हाल-चाल पूछने का इरादा नहीं था। हम तो केवल नमस्ते कर रहे थे। लेकिन दुकानदार ने हमारा हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया और विस्तार से अपना हाल-चाल बताने लगा। हाल-चाल वास्तव में बताने योग्य था। बीमारी गंभीर थी। पृष्ठभूमि के साथ दुकानदार ने अपनी बीमारी के बारे में बुनियादी बातों से बताना शुरू किया। पृष्ठभूमि बताने में ही दस मिनट लग गए। फिर जांच बताने का नंबर आया। हम अब तक परेशान हो चुके थे। हमने व्याकुलता के साथ प्रश्न किया-” जांच का परिणाम क्या निकला?”
दुकानदार ने कहा “जॉंचों के परिणाम इतनी जल्दी थोड़े ही निकलते हैं। काफी समय लगता है। एक जगह हमने टेस्टिंग कराई। उसके बाद फिर दूसरी जगह भी करानी पड़ी। आने-जाने में बहुत समय लगा। परेशानी भी बहुत होती थी।”
हम इतनी लंबी जॉंचों के किस्से को सुनने के लिए तैयार नहीं था। हम उठकर चलने लगे-” फिर कभी फुर्सत से आपका हाल-चाल पूछेंगे । इस समय जरा जल्दी है।” कहकर हमने पीछा छुड़ाना चाहा लेकिन दुकानदार कहॉं मानने वाला था। उसने कहा -“कभी भी अधूरा हाल-चाल पूछ कर उठना नहीं चाहिए। अब जब पूछा ही है तो पूरा सुनकर जाओ।”
मरता क्या न करता! हम हाल-चाल पूछ कर बुरी तरह फॅंस चुके थे। लाचारी में आधे घंटे तक हाल-चाल सुनते रहे और जब हाल-चाल पूरा हुआ, तब हमने कसम खाई कि अब भविष्य में कभी किसी से हाल-चाल नहीं पूछेंगे। केवल नमस्ते करेंगे और आगे बढ़ जाएंगे।”
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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