क्या सोचता हूँ मैं भी
क्या सोचता हूँ मैं भी,
इस नफरत – उलफत में,
बर्बाद उनको करने की,
बदनाम उनको करने की,
जिन्होंने किया है कल को,
बर्बाद और बदनाम मुझको।
क्या सोचता हूँ मैं भी,
बनाने की एक योजना,
उनसे बदला लेने के लिए,
जिन्होंने दिया नहीं है मुझको,
सम्मान और प्यार रिश्तों का,
बचपन में मानकर अपना खून।
क्या सोचता हूँ मैं भी,
उनका करने को खून,
जिन्होंने बनाया है
मेरी मोहब्बत का मजाक,
एक खिलौना मानकर मुझको,
एक महफिल में हंस- हंसकर।
जानता हूँ मै यह भी कि,
वो कोई और नहीं है,
बल्कि मेरे ही परिचित हैं
मेरे ही दोस्त- रिश्तेदार है
जो तौलते है हर चीज को,
दौलत की तराजू में,
अब मैं भी धनवान हूँ,
रसूखदार हूँ बहुत,
रखता हूँ हैसियत मैं भी ,
हर किसी को खरीदने की,
क्या सोचता हूँ मैं भी।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847