क्या से क्या हो गया
क्या से क्या हो गया
*****************
क्या से क्या है हो गया,
पल में रास्ता खो गया।
जागे हम कब नींद से,
भाग्य बेफिक्र सो गया।
गहरे घावों से भरी,
आँसू बन कर धो गया।
मैली चादर ओढ़ कर,
जालिम ज़ख्म बो गया।
मनसीरत जड़ से हिला,
खुद व्यथा पर रो गया।
******************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)