क्या लिखूँ
उखड़ा है मन लेखनी का मन में उठ रहा है बवाल
आखिर लिखूँ तो क्या लिखूँ दिल में आते हैं कई खयाल
क्या लिखूँ?
प्रताड़ित होती नारी पर छिड़ा नारी विमर्श लिखूँ
या फिर पीड़ा में देह छोड़ते कृषकों का संघर्ष लिखूँ
क्या लिखूँ.?
मोबाइल के हाथों बच्चों का छिनता बचपन लिखूँ
या फिर सत्ताधीशों को लुभाते भोग छप्पन लिखूँ
क्या लिखूँ.?
जनता की पीठ पर महंगाई के कोड़ों की मार लिखूँ
या जीवन पर मृत्यु सा पड़ा प्रदूषण का भार लिखूँ
क्या लिखूँ.?
पड़ोसी दुश्मन को अपनी चेतावनी का गर्जन लिखूँ
या छंद मुक्तक गीत कविताएँ और भजन लिखूँ
क्या लिखूँ.?
धूम धाम से मनाते होली दिवाली के त्योहार लिखूँ
या सरहद की सलामती में सिपाही के तन का तार-तार लिखूँ!
क्या लिखूँ.?
जहाँ नारी पुजती वहाँ देवता बसते का झूठा आलाप लिखूँ
या बेटी का होना आज भी है अभिशाप लिखूँ
क्या लिखूँ.?
दिल कर रहा बारम्बार सवाल मन में उठ रहा है बवाल
मन है व्यथित बहुत मेरा कि हर कोई है यहाँ पर बेहाल ।
क्या लिखूँ.?
हर्फ़ – हर्फ़ लफ्ज़ -लफ्ज़ यहाँ सिसक रहा आँसू खून के
पूरा पन्ना हुआ है लाल, और पूरा पन्ना हुआ है लाल।
तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ? मैं क्या लिखूँ.??
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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