क्या रखा है? वार में,
मानव मानव का दुश्मन हुआ,
मैं तुमको आज बताता हूंँ।
रक्त पिचास क्यों बने हुए तुम,
मैं तुमको समझाता हूंँ।
युद्ध नहीं बुद्ध की नीति,
अभी आज अपना लो तुम।
जैसा करोगे वैसा मिलेगा,
याद रखो संसार में।
क्या रखा है वार में।।१।।
यह बार-बार क्यों होते वार?
जरूरत है, तुम करो सुधार ।
कुछ हम सुधरें कुछ तुम सुधरो,
शान्ति से खोजो हल क्या है?
आज का ध्यान भी तुम रखना,
सोचो तुम्हारा कल क्या है?
तहस-नहस निराशा चीखें,
मिलेंगे इस संसार में।
क्या रखा है वार में।।२।।
भूल गए हिरोशिमा क्यों?,
नागासाकी याद नहीं।
अमेरिका की चालाकी का,
तुमको क्यों आभास नहीं।
दूर खड़ा रहता है, खुद तो,
आपस में चलवाता है।
तुमको तो हानि ही मिलती,
खुद तो लाभ उठाता है।
दादागिरी न चलेगी लम्बी,
सुधार कर व्यवहार में।
क्या रखा है वार में।।३।।
किसी की बीवी- बच्चे बिछड़े,
किसी का सत्यानाश हुआ।
चीख-पुकार से आंँगन गूंँजे,
मार्ग लथपथ लाल हुआ।
बेचैनी निराशा हताशा चीखें,
किसी का पारावार नहीं।
शान्ति से सुलझा लो मसला,
क्या रखा हथियार में।
क्या रखा है वार में।।४।।
झकझोर दिया, कुछ तोड़ दिया,
कुछ अपनों ने ही छोड़ दिया।
तबाही लहूलुहान लाशें हाहाकार,
निर्दोष क्यों हो रहे शिकार ?
गलती क्या है? इनकी यार।
तहस-नहस प्रलय का दृश्य,
आंँखों में आंँसू लाता है।
देखो कैसा लहू बह रहा नर के कारोबार में,
क्या रखा है वार में।।५।।
हथियारों की होड़ ने,
रुला दिया इस मोड़ ने।
थर्ड वार की बारी क्यों?
ऐसी भी लाचारी क्यों?
लपटों से क्या डर नहीं लगता?
मन तुम्हारा क्रन्दन नहीं करता।
शान्ति का फैलाओ संदेश,
सब कुछ मिलेगा प्यार में।
क्या रखा है वार में।।६।।
दोस्त बदल जाते हैं, अक्सर,
पड़ोसी फिर भी बेहतर है।
नाटो,ईयू से अच्छा,
रूस ही उसका घर है।
अन्धकार में परछाई भी,
साथ हमारा नहीं देती।
कैसे करूंँ नाटो पर विश्वास,
दिख रहा थर्ड वार में।
क्या रखा है वार में।।७।।
मिलजुलकर सब रहे देश,
बदलो अपना छदम वेश।
शान्ति चमन अमन प्यार,
जीवन मे अपना लो यार।
होड़ तोड़ विध्वंश विनाश,
पूर्व में डालो प्रकाश।
युद्ध से कभी भला हुआ नही,
देख लिया संसार में।
क्या रखा है वार में।।८।।
दुष्यन्त कुमार की है,यह आशा,
बदलो युद्ध की तुम परिभाषा।
युद्ध नही हमे बुद्ध चाहिए।
दलाल चाटुकार नही चाहिए।
चेहरों पर मुस्कान चाहिए।
झूठा न प्रचार चाहिए।
मानवता का सार चाहिए।
कहता संक्षिप्त सार मैं।
क्या रखा है वार में।।९।।