क्या यही हैं वो रिश्तें ?
क्या यही है वो रिश्तें ?
जिनसे जुड़ा रहता है,
आदमी, आदमी से,
जिनसे जुड़ा रहता है,
परिवार, एक सूत्र में।
लेकिन क्यों पिघल जाते हैं ये रिश्तें,
आतप के ताप से मुसीबत में,
क्यों टूट जाते हैं ये शीशे की तरहां,
जरा सी आहत में ही,
थोड़े से तनाव से ही,
क्या ऐसा ही होता है,
इन रिश्तों में प्रेम का बन्धन।
और क्यों बन जाते हैं,
अनजान ये रिश्तें,
किसी के संकट के समय बेदर्दी,
क्यों हो जाते हैं पराये ये रिश्तें,
जब आ जाती है जीवन में गरीबी,
क्या यही है इन रिश्तों की हकीकत।
सोचता हूँ मैं हर पल यही,
क्योंकि आज मैं मुसीबत में हूँ ,
और मांग रहा हूँ मैं मदद,
अपने परिवार और दोस्तों से,
लेकिन सभी अपनी मजबूरियां गिनाकर,
छुड़ा रहे हैं मुझसे अपना पिंड।
ऐसे अगर हो जाये इस अकाल में,
तो आ जायेंगे ये सब मेरी मैयत पर,
बहाने को आँसू सैलाब की तरहां,
दिखाने को दिखावटी प्रेम,
क्या यही है वो रिश्तें ?
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)