क्या यही मानव जीवन है ?
बहुत मुश्किल है जहां में सारी
तमन्नाएं पूरी हो जाएं,
कितना भी कोई कोशिश करे ,
कोई न कोई रह ही जाती है ।
भाग्य से किसी किसी की पूरी हो भी जाए,
मगर उनके मुख से भी यही सुनने को मिलेगा ,
हमारी उक्त अभिलाषा अधूरी रह गई ।
और जिसकी एक भी पूरी नहीं होती ,
जाने के समय वोह भी सोचेगा ,
काश ! एक तो पूरी हो जाती ।
जिंदगी छोटी हो या बड़ी ,
तमन्नाओं के लिए समय कम क्यों होता है ?
क्यों दिल में कोई न कोई मलाल रह जाता है ?
बहुत कम है वोह इंसान भाग्य शाली ,
जो संसार से संतुष्ट होकर जाते है ।
वरना हर इंसान कोई न कोई संताप ,
अपने साथ लेकर जाते हैं।
क्या वास्तव में तमन्नाओं का पूरा होना नामुमकिन है ?
अगर इतना ही मुश्किल है ,
नामुमकिन है यह ,
तो दिल में पैदा होती क्यों है ?
ना यह पैदा हो ,और न ही कोई गम खाना पड़े ।
बिना अरमाओं के जिंदगी बड़े आराम और सुकून से गुजरे ।
मगर क्या यह मुमकिन है ?
आखिर जिंदगी में फिर क्या मुमकिन है ?
एक रोग दिल को लगा रहे ,
और टीस पैदा करता रहे ।
क्या यही मानव जीवन है ?