क्या मुझे भूल जाएगी वो?
क्या मुझे भूल जाएगी वो?
बिछुड़ गये दोस्त
बदल गई दुनियाॅं
ना चाहकर भी…
सिमट गई दुनियाॅं !
बिछुड़ गये दोस्त !!
थी बड़ी भोली-भाली
अंदाज़ की मतवाली
ना मैं समझ पाया
ना वो समझ पाई !
इस ज़ालिम दुनियाॅं ने
क्या क्या खेल दिखाई!
बिछुड़ गए दोस्त !!
बात छोटी सी थी
पर बड़ी बन गई !
राहों में थे काॅंटे…
पैरों में ही चुभ गई !
बढ़ने थे जो कदम…
ज़ख्मों से भर गई !
ज़ख्म बड़े गहरे…
नीर नयनों से बह गई !
बिछुड़ गए दोस्त !
बिछुड़ गए दोस्त !!
पता नहीं कब…?
लौट के आएगी वो
क्या सपनों में भी…
अरमाॅं सजाएगी वो
ओझल ऑंखों में भी
मुखड़ा दिखाएगी वो
या सदा के लिए….
मुझे भूल जाएगी वो
क्या मुझे भूल जाएगी वो?
बिछुड़ गए दोस्त !
बिछुड़ गए दोस्त !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार कर्ण ।
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