“क्या निकलेगा हासिल”
“क्या निकलेगा हासिल”
क्या निकलेगा हासिल सोचते क्यों हो,
फ़ानी दुनिया है यह बूझते क्यों हो।
गम के एहसास को ग़ज़ल का सुखन दो,
खुशियों का ठिकाना पूछते क्यों हो।
“क्या निकलेगा हासिल”
क्या निकलेगा हासिल सोचते क्यों हो,
फ़ानी दुनिया है यह बूझते क्यों हो।
गम के एहसास को ग़ज़ल का सुखन दो,
खुशियों का ठिकाना पूछते क्यों हो।