क्या जश्ने आज़ादी
तड़प रही आबादी
क्या जश्ने आज़ादी
जन-गण में लाचारी
भूख और बेकारी
हर आँखें फरियादी
क्या जश्ने आज़ादी
दर्द और तक़लीफ़ें
टूट रही उम्मीदें
मुश्किलें बेमियादी
क्या जश्ने आज़ादी
ना बिजली, ना पानी
नित मारती गिरानी
खुशियाँ लगे मियादी
क्या जश्ने आज़ादी
यह मजहबी दरारें
जाति, धर्म, दीवारें
हुकूमत में फ़सादी
क्या जश्ने आज़ादी
आगे-पीछे घातें
आतंक की बिसातें
बैचैन ज़िन्दगानी
क्या जश्ने आज़ादी
शहर शहर बंजारे
गरीबों की कतारें
ज़ख्मों के सब आदी
क्या जश्ने आज़ादी
सत्ता की मनमानी
रिश्वत बेईमानी
अब दागदार खादी
क्या जश्ने आज़ादी
केवल सिसकियाँ रहीं
कुछ तब्दीलियाँ नहीं
काग़ज़ी कामयाबी
क्या जश्ने आज़ादी
अंदाज़ बदलता है
बस ताज़ बदलता है
जाती नहीं गुलामी
क्या जश्ने आज़ादी
हर तरफ तंगहाली
दूर अभी खुशहाली
हो जंग की मुनादी
क्या जश्ने आज़ादी
© हिमकर श्याम