क्या करूँ हाय !
कुछ कहूँ पर क्या कहूँ
समझ में कुछ ना आए
मेरे आसपास ही फिरते हैं
उसकी यादों के साए
आँख से उसकी जो गुजरूं
तो यकीं होता है
इस तरह आते हैं मुझमें
कुछ ख्याल गहराए
साँस लेना भी न मुमकिन है
मैं तो ठिठका हुआ बैठा हूँ
मेरे अन्दर ही हैं कुछ यारब
तेरे अहसास गहराए
अपने भीतर ही कुलाँचे
भरता रहता हूँ
कितने ही जंगल हैं आकर
मुझमें समाए
इश्क से पहले मालूम ही क्या था
क्या है आखिर ये बला
अब जो हुआ है मुझे इश्क
तो करूँ हाए हाए हाए !!
गाफ़िल