कौन हो तुम!
यह कौन है ?जो मौन सतत
पर बोलता है अनवरत!
कौन है मन के गहरे कोने में
अदृश्य है !
पर सब देखता है
निरंतर ,सदा चिंतन में
यह कौन है,प्रवाह में है
कभी प्रशांत है ,मार्गदर्शक ऋषि बने
कभी प्रेरणा परोसता है
ध्यान में जब मैं अनंत को खोजता
यह कौन है जो साक्षी है!
मेरे हृदय में है
कहां है ,गर यहाँ नहीं
कहीं कोई भ्रम तो नहीं!
जहाँ चलूँ तू वहीं चले
जहाँ थमूं मैं तू ेवहीं
थमे
क्या तू ही मेरा मूल है
तू बीज है
मैं अंकुरण तेरा!
तू सदा साथ है
मेरे हर कर्म का साक्ष्य है, हे सखा!
घने तमस में तुम्हे खोजता हूँ
टटोलता हूँ!
कौन हो तुम ,क्यों मौन हो तुम?
मुकेश कुमार बड़गैयाँ “कृष्णधर द्विवेदी”
mukesh.badgaiyan30@gmail.com