“…. कौन है “
गुम है सभी अपनी- अपनी परेशानियों में,
यहां एक दूसरे का हालचाल अब पूछता कौन है….!
क्या फर्क पड़ता है आँसू गम के है या खुशी के है,
यहां आँसुओं की भाषा अब समझता कौन है….!!
नाजुक से दिल को तोड़कर सुकून की नींद आ जाती है,
यहां लैला मजनूँ जैसी मौहब्बत अब करता कौन है….!
उत्सव मनाया जाता है अब तो दिलों से खेलकर
यहां खिलौनों से भला अब खेलता कौन है….!!
मैं तो पूछता चला गया हर मोड़ पर मंजिल का पता,
मगर यहां सही रास्ता अब दिखाता कौन है…!
दिखाया जाता है सच्चाई का आइना एक दूसरे को,
मगर यहां खुद के भीतर अब झाँकता कौन है….!!
सौ कारण दे दियें जायेंगे आँसू बहाने के लिए,
वजह हँसाने की यहां अब जानता कौन है….!
छोड़ दिया जाता है आधें रास्ते में ही हाथ को,
जनाब यहां पूरा साथ अब निभाता कौन है….!!
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना