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17 May 2024 · 1 min read

कौन है जिसको यहाँ पर बेबसी अच्छी लगी

कौन है जिसको यहाँ पर बेबसी अच्छी लगी
ज़िंदगी में कब किसी को तीरगी अच्छी लगी

जब भी होती है किसी को बे-वजह सी ये घुटन
फिर कहाँ किसको भला ये ज़िन्दगी अच्छी लगी

मैं थका हारा हुआ था फिर जा बैठा छाँव में
फिर दरख़्तों की मुझे बस ख़ामुशी अच्छी लगी

जिस तरह गंदुम की रोटी से यूँ मन भरता नही
इस तरह मुझको मिरी माँ की हँसी अच्छी लगी

जब से हमने भी सुनी है दास्तान-ए-कर्बला
तब से हमको बस हमारी तिश्नगी अच्छी लगी

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