कौन सताए
ज़िद्दी स्वाभाव बचकानी हरकते,
उसकी मनमानी और तीखे तेवर!
रोते हुए को भी एकदम हँसा दे,
चेहरा देख के ही हाल बता दे ।
कोई बहाना जहां चल न पाए,
हर बात पे बस वो कसमें उठाये।
परवाह ऐसी जैसे अधिकार जताये,
कोई कबतक उनसे नजरें चुराए।
गुस्से में भी इतना सत्कार,
आप के अलावा कोई शब्द न आए।
खुद से ज्यादा परवाह करे जो,
ऐसे प्रिय को फिर कौन सताए?
©अभिषेक पाण्डेय अभि