कौन नगर में फिर आया
लिखते गाते गीत ग़ज़ल यह कौन नगर में फिर आया
किसके दिल में पीर उठी है कौन मेरा है हमसाया
किसने अपने शहर को छोड़ा किसने छोड़ा घर अपना
किसने ग़मों में ख़ुशियाँ देखीं कौन ग़मों पर इतराया
ये आलाप भरा है किसने मेरे दिल को चीर गया
ऊँचा सुर तो दुख का सुर है किसने दुख सुर में गाया
किसका प्यार है लुटा है फिर से किसके सपने टूट गये
किसके दिल पर चोट लगी है कौन तड़प कर बल खाया
किसने वार सहे हैं सबके किसने सबको मुआफ किया
जिस्म-जिगर-जां ज़ख़्मी पाकर कौन दिलावर मुस्काया
– शिवकुमार ‘बिलगरामी’